सरकार किसी की भी हो, लोकतंत्र की मजबूती के लिए सवाल पूछे जाने जरूरी हैं
किसी भी देश का लोकतंत्र तभी मजबूत होगा, जब उस देश की हुकूमत वहां की जनता के सवालों के जवाब सही तरीके से दे। अगर कोई भी एक सरकार जनता के सवालों के जवाब न देकर उससे मुंह चुराएगी तो आने वाले समय में जो सरकारें होंगी निश्चित तौर पर वो भी ऐसा ही करेंगी। इसलिए मजबूत लोकतंत्र के लिए सवालों का पूछा जाना जरूरी है।
सवाल करना क्यों जरूरी है
लोकतंत्र जनता के वोट से चलता है और जनता के वोट से ही सरकार आती भी है और जाती भी है। इसलिए वोट देने वाली जनता का अधिकार है कि वो वाजिब तरीके से सत्ता से सवाल पूछ सकें। सवाल पूछते समय यह न देखा जाए कि सत्ता में बैठा कौन है और सत्ता में बैठा व्यक्ति इस अहम में न आएं कि आखिर वो क्यों जवाब दे। जनता के सवालों का जवाब देकर ही जनता के मन में बैठा जा सकता है और सही मायनों में इज्जत भी पाई जाती है।
आतंकी हमले के बाद सवाल उठने जरूरी हैं
पुलवामा आतंकी हमले के बाद कई ऐसी रिपोर्ट आ चुकी हैं जिसमें सीधे तौर पर खुफिया तंत्र की चूक की तरफ इशारा किया गया है। ऐसा नहीं है कि ये पहली बार चूक हुई है। इससे पहले इंडियन एयरलाइंस के विमान को हाईजैक किया जाना, संसद पर आतंकी हमला, गुजरात में अक्षरधाम मंदिर पर आतंकी हमला, 26 11 का आतंकी हमला, पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला, उड़ी आतंकी हमला और अब पुलवामा का आतंकी हमला इस बात की पुष्टि कर रहा है कि कहीं न कहीं हमारे खुफिया तंत्र में ढिलाई बरती गई जिससे ये सभी आतंकी हमले हो पाए। पुलवामा आतंकी हमले के बाद राजनीतिक पार्टियों का आरोप—प्रत्यारोप से हटकर इस बात पर ध्यान देना होगा कि आखिर क्यों खुफिया एजेंसियों के इनपुट होने के बाद भी ये आतंकी हमला हो पाया और हमारे देश के 45 से ज्यादा जाबांजों ने अपनी जान गंवा दी। अगर इन सवालों के जवाब नहीं ढूंढे गए तो आने वाले समय में भी ऐसे हमले होते रहेंगे और हमारे सैनिकों की जान दांव पर होगी। इसलिए सवाल पूछे जाने जरूरी हैं।
सवाल पूछने वाले को नहीं उसके सवाल को देखें
आज कल अगर कोई भी किसी सरकार से सवाल पूछ लेता है तो सबसे पहले ये ढूंढा जाने लगता है कि सवाल पूछने वाला कौन है, इसका एजेंडा क्या है और आखिर ये ही सवाल क्यों पूछ रहा है। किसी भी समय हुकूमत करने वाले लोगों को यह जान लेना चाहिए कि लोगों के करोड़ों सवाल हैं, पर वो किसी न किसी मजबूरी में पूछ नहीं पा रहे हैं और उनके इस सवाल पूछने के काम को करने का जिम्मा कुछ लोग कर लेते हैं। पर जब लोग सवाल पूछते हैं तो वही कठघरे में खड़े कर दिए जाते हैं, ऐसा क्यों किया जाता है। सत्ता स्थायी नहीं होती है, इसलिए सत्ता में बैठे लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर आज वो सवाल पूछने वालों पर सवाल उठाएंगे तो जब वो सत्ता में नहीं होंगे तो उनके साथ भी ऐसा ही होगा। उनके सवाल उठाने पर ही पाबंदी लगेगी और ऐसे में नुकसान मजबूत लोकतंत्र को होगा।
सवाल पूछना अधिकार है
हर बच्चे के मन में एक जिज्ञासा होती है और हर बच्चा उस जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। ऐसा ही सवालों के साथ भी है। जो व्यक्ति सोच सकता है वो सवाल भी पूछेगा। जरूरी नहीं है कि हर सवाल का जवाब उस व्यक्ति को मिल जाए पर एक सवाल पूछ कर वो और लोगों के मन में सवाल पूछने का उत्साह तो पैदा कर ही सकता है। सवाल पूछने से कभी डरना नहीं चाहिए बल्कि तथ्यों के साथ सवाल पूछने से आप सवाल देने वाले को और ज्यादा जिम्मेदार बना सकते हैं। तथ्यों के साथ सवाल पूछने से यह फायदा होता है कि आपके सवाल को खारिज नहीं किया जा सकता है और जवाब देने वाला भी गलत नहीं दे सकता है।
लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले देंगे सवालों के जवाब
देश का इतिहास रहा है कि जो भी सरकार सवालों से भागी है, लोगों ने अपने वोट से उसे भगा दिया है। वर्ष 1975, 1991, 1999, 2004, 2014 और अब 2019 का समय है। ये वो समय था जब लोगों ने सबसे ज्यादा मुखर होकर सवाल किए हैं। बस 2014 और 2019 में लोगों को सोशल मीडिया का साथ मिल गया है तो अब सवालों की संख्या और ज्यादा तेजी से बढ़ गई है। आने वाले समय में इन सवालों की संख्या और ज्यादा बढ़ेगी। साथ ही सवालों के जबाव देने वालों को भी अपने आप को परखना होगा कि वह समय के हिसाब से सवालों के जवाब दे रहे हैं या फिर उनसे मुंह चुरा रहे हैं। क्योंकि सवालों से मुंह चुराने वालों से सीधे तौर पर जनता मुंह चुरा लेगी और फिर जवाब वोट के जरिए करारा जवाब देगी।
संबंधित खबरें
सोसाइटी से
अन्य खबरें
Loading next News...