क्या कन्हैया को राजनीति में नहीं आने देना चाहते तेजस्वी?

कभी किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) को भले ही बिहार के महागठबंधन में जगह न मिली हो, लेकिन पार्टी बिहार में एक सीट पर मजबूती के साथ लड़ने जा रही है। यह सीट है बेगूसराय लोकसभा की। बेगूसराय सीट से पार्टी ने कन्हैया कुमार को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला लिया है। यहां से पार्टी महागठबंधन में आरजेडी के उम्मीदवार तनवीर हसन और भाजपा से सांसद व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के सामने उतारने जा रही है। बेगूसराय सीट से कन्हैया कुमार के उतरने के बाद इस सीट पर मुकाबला काफी रोचक हो गया है।
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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार अपनी राजनीति की पारी अपने पैतृक जिले से शुरू करने जा रहे हैं। बेगूसराय में इसलिए रोचक मुकाबला होने की उम्मीद है क्योंकि कन्हैया कुमार पिछले कुछ समय से बेगूसराय में अपना झंडा बुलंद किए हुए और वह महागठबंधन से यह सीट मांग रहे थे। लेकिन महागठबंधन ने बेगूसराय से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। राष्ट्रीय जनता दल के तनवीर हसन के यहां से उतरने पर मुकाबला रोचक होने की पूरी उम्मीद है। दोनों फायर ब्रांड नेता के आमने-सामने होने से बेगूसराय की सीट काफी हॉट हो गई है। अब पूरे देश की इस लोकसभा सीट पर नजर टिक गई है। त्रिकोणीय मुकाबले में यह सीट किसके हिस्से में जाएगी यह तो 23 मई को ही पता चलेगा, लेकिन इस समय भाजपा सांसद गिरिराज सिंह काफी बेचैन नजर आ रहे हैं और प्रत्याशी घोषित होने के बाद भी वह दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। बता दें गिरिराज सिंह पहले बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने से कतरा रहे थे, लेकिन भाजपा ने उन्हें यहां से उम्मीदवार बना दिया।

दरअसल, बेगूसराय लोकसभा सीट सीपीआई का गढ़ मानी जाती है, पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से सीपीआई प्रत्याशी ने 1.92 हजार वोट पाए थे। बिहार में बेगूसराय को लेनिन ग्राद नाम के नाम से भी जाना जाता है। सात विधानसभा वाली बेगूसराय लोकसभा पर पिछले चुनाव में भाजपा के भोला सिंह ने जीत हासिल की थी। उनका बीते साल निधन हो गया है। वह बिहार की राजनीति में जाना-माना चेहरा थे और सरकार में मंत्री रहने के अलावा बेगूसराय से 8 बार विधायक भी थे। इस सीट पर भूमिहारों का काफी वोट है और इस सीट से कन्हैया कुमार और भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह दोनों ही एक ही जाति (भूमिहार) से आते हैं।
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ऐसे में दोनों के बीच में वोट बंटेगा और अभी तक के इतिहास में इस लोकसभा सीट से भूमिहार ही जीतते रहे हैं। इस सीट से यह समीकरण देखते हुए यह उम्मीद की जा रही थी कि इस बार इस सीट से गठबंधन के उम्मीदवार कन्हैया कुमार होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 20 मार्च को महागठबंधन ने इस सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। राजद ने अपने कोटे से सीपीआई (माले) को एक सीट देने की भी बात कही थी जबकि सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) यह सीट मांग रही थी। यह सीट न मिलने पर महागठबंन में शामिल राजद पार्टी पर सवाल उठने लगे हैं। क्या बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कन्हैया कुमार को राजनीति में नहीं आने देना चाहते हैं ऐसे ही न जाने कितने मुद्दों पर सवाल उठने लगे है क्योंकि कुछ समय पहले तक तेजस्वी कुमार के साथ-साथ कन्हैया कुमार घूम रहे थे और वह बिहार में सीपीआई का बड़ा चेहरा के रूप में उभर भी रहे थे।
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रविवार को कन्हैया कुमार की प्रेस कॉन्फेंस में काफी हद तक यह बात सही साबित हो भी गई। बात जब तेजस्वी यादव की आई तो कई तहर के सवाल उन खड़े हो गए। कहा यह भी गया कि क्या तेजस्वी नहीं चाहते हैं कि कन्हैया राजनीति में आएं ? नहीं तो फिर बेगूसराय की सीट उन्होंने अपने कोटे में क्यों ले ली ? राजद के तनवीर हसन के लड़ने की चर्चा क्यों चली ? लोग ये भी कह रहे हैं कि कन्हैया पर तेजस्वी ने घास नहीं डाली। इन सब सवालों पर जवाब देते हुए कन्हैया कुमार ने कहा, "मैं कोई गधा नहीं हूं जो मुझ पर कोई घास डालेगा। मैं इंसान हूं और मैं भी रोटी खाता हूं और हमेशा ही मैं रोटी की बात भी करता हूं। इसलिए मैं इसकी परवाह भी नहीं करता कि कोई मुझ पर कोई घास डालेगा कि नहीं।''
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उन्होंने कहा कि, 'जहां तक बात बेगूसराय में तनवीर अहमद जी के चुनाव लड़ने की है तो मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि वो लड़ाई में हैं ही नहीं। यहां पर लड़ाई सिर्फ मेरी भाजपा से ही है। जो हम समझ रहे हैं, वो बात उन्हें (तेजस्वी) क्यों नहीं समझ में आ रही हैं। सिर्फ इतना ही कहूंगा कि वो भी एक राजनीतिक दल चलाते हैं, उनकी अपनी प्रतिबद्धताएं हैं, उनका अपना गुणा-गणित है। अब ये बात उनसे पूछनी चाहिए कि जो हम समझ रहे हैं वो ये क्यों नहीं समझ रहे हैं।' कन्हैया कुमार ने साफ किया है वह चुनाव लड़ने जा रहे हैं और अच्छी तरह से चुनाव लड़ेंगे। कन्हैया ने जब जातिगत सीट पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कभी इसके बारे में सोचा ही नहीं। मैं हमेशा ही आदर्श राजनीति करना चाहता हूं उसमें जातिगत की कोई अहमियत ही नहीं है।

कन्हैया कुमार की यहां से मजबूती के साथ चुनाव लड़ने से बीजेपी उम्मीदवार गिरिराज सिंह भी काफी परेशान है। इस बार नवादा लोकसभा सीट लोजपा के खाते में चली गई है। सीट बदले जाने से वे पहले से ही नाराज चल रहे हैं और अब कठिन सीट दिए जाने की वजह से उन्होंने कुछ अलग ही मन बना लिया है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि सीट बदले जाने के संकेत मिलने के कारण वह पीएम मोदी की रैली में शामिल नहीं हुए थे। अब पार्टी ने उन्हें मना लिया है, लेकिन उन्हें बेगूसराय की सीट है, जहां पर चुनाव जीतना बीजेपी के लिए भी इस बार आसान नहीं है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि गिरिराज सिंह इस सीट से चुनाव भी नहीं लड़ेंगे। खबरों के अनुसार गिरिराज सिंह का कहना है कि जब किसी भी केंद्रीय मंत्री की सीट नहीं बदली गई तो उनके साथ पार्टी ऐसा क्यों कर रही है। गिरिराज सिंह का आरोप है कि अगर ऐसा ही करना था, तो फिर मुझे विश्वास में क्यों लिया गया।
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