किस्मत से लड़कर जीतता 'एक फाइटर'

21 अप्रैल 1977 को पहले कुवैत में इंडियन पैरेंट्स के यहां पैदा हुए खालिद जमील को किस्मत से हमेशा धोखा ही मिला लेकिन उन्होंने इस पर कोई गिला करने की जगह हमेशा खुद को आने वाली लड़ाई के लिए तैयार किया।
कुवैत में एक अंडर-14 कैंप में फ्रेंच दिग्गज माइकल प्लातिनी से मिलने के बाद उन्हें अपना आइडल मान लेने वाले जमील गल्फ वॉर के वक्त कुवैत छोड़कर इंडिया चले आए थे और मुंबई में अपनी आंटी के साथ रहने लगे थे। हमेशा खुदा के शुक्रगुजार रहने वाले जमील ने इंडिया के दो सबसे बडे क्लबों ईस्ट बंगाल और मोहन बागान का कॉन्ट्रैक्ट ठुकरा दिया था क्योंकि उन्हें शराब कंपनियां स्पॉन्सर कर रही थीं।
इस बात को लगभग 20 साल होने वाले हैं और पांचो वक्त के नमाजी जमील को इसका कोई पछतावा नहीं है। उन्होंने आज तक अपनी किसी भी परेशानी के लिए खुदा को जिम्मेदार नहीं ठहराया जबकि वो हर अचीवमेंट के लिए उसका शुक्रिया अदा करना नहीं भूलते।
महिंद्रा यूनाइटेड से शुरू किया था करियर
1997 में महिंद्रा यूनाइटेड से अपना प्रोफेशनल करियर शुरू करने वाले जमील टीम के लिए एक मैच भी नहीं खेल पाए। अगले सीजन एयर इंडिया जॉइन करने के बाद उन्होंने टीम के साथ 2000-01 सीजन में डेब्यू किया और उनके लिए 19 मैचों में 2 गोल किए। इसी साल उन्हें नेशनल टीम के लिए 7 मैच खेलने का मौका मिला। वसूलों के पक्के जमील ने एक बार मैन ऑफ द मैच मिली शैम्पेन की बोतल को बेचकर स्लम के बच्चों में मिठाई बांट दी थी।
इसी साल उन्हें ब्रूनेई के एक क्लब से ऑफर मिला जिसे उन्होंने ठुकरा दिया और इसका पछतावा उन्हें आज भी है। इस सीजन के बाद जमील, महिंद्रा यूनाइटेड लौट आए लेकिन यहां से चोटों ने उनके करियर को खराब करना शुरू कर दिया। क्लब के साथ 2007 तक रहने वाले जमील इस दौरान सिर्फ 18 मैच ही खेल पाए। साल 2002 में उनके घुटनों में लगी चोट ने उनके करियर पर बहुत बुरा असर डाला और अपने पीक पर चल रहा यह फुटबॉलर फिर कभी अपनी लय नहीं पा सका लेकिन इसके लिए भी जमील खुदा या किस्मत को दोष देने की जगह हंसकर बस इतना कहते हैं, 'मेरे घुटने की चोट ने मेरे पीक के कुछ साल बर्बाद कर दिए।' और फिर आसमान की तरफ देखने लगते हैं।
2009 में फुटबॉल से लिया रिटायरमेंट
2007 में मुंबई FC जॉइन करने वाले जमील अगले दो सालों तक टीम के साथ रहे लेकिन एक भी मैच नहीं खेल पाए। अंत में साल 2009 में उन्होंने फुटबॉल से रिटायरमेंट ले ली और मुंबई के मैनेजर बन गए। मुंबई के साथ पहले सीजन (2009-10) में उन्होंने टीम को 14 टीमों में से 11वीं पोजिशन तक पहुंचाया।
टीम की कमजोर आर्थिक हालत को देखते हुए इसे बेहतरीन सीजन बताया गया। 2010-11 सीजन में मुंबई ने 7वीं और 2015 सीजन में अपनी बेस्ट 6 पोजिशन पर फिनिश किया। टीम के बेहद लिमिटेड रिसोर्स में अपना बेस्ट देने वाले जमील को इस सीजन की शुरुआत में मुंबई ने बर्खास्त कर दिया।
मुंबई से निकाले जाने के बाद जमील ने पिछले सीजन में रेलिगेट हुई और इस सीजन की शुरुआत में गोवा के क्लबों द्वारा आई-लीग से नाम वापस लिए जाने के बाद पब्लिक की भारी डिमांड पर आई-लीग में वापस बुलाई गई टीम आईजॉल FC की कमान संभाली।
इस सीजन आईजॉल के ज्यादातर अवे मैचों में क्राउड ने जमील का जमकर मजाक उड़ाया। कई मैचों में तो फैंस ने जमील का नाम लेकर उन्हें गालियां दीं। हर किसी ने जमील का मोरल डाउन करने की पूरी कोशिश की और जमील उनकी गालियों का जवाब अपनी टैक्टिस और टीम की जीत से देते रहे।
पूरे सीजन मजाक के पात्र बने रहे जमील ने सीजन का अंत अपना सपना सच कर के किया, आई-लीग जीतकर। इस पर उनका कहना है, 'मैं हमेशा से आई-लीग जीतना चाहता था। हर साल सीजन शुरू होते वक्त मैं खुद से कहता था, इस साल मुझे यह जीतना है। मुझे इंतजार करना पड़ा और आखिरकार आज हम जीत ही गए। यह जीत टीमवर्क का नतीजा है।'
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