'हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं'

पूरी दुनिया के लोग कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। हर दिन इससे संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। हर जगह दहशत का माहौल है। लेकिन इस बीच एक बड़ी अजीब चीज मैंने महसूस की है। यहां लोग कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति को बड़ी अजीब तरह से देखते हैं, ऐसा लगता है जैसे उसने कोई गुनाह-ए-अजीम कर दिया हो। मीडिया में ऐसे कई लोगों के बारे में रिपोर्ट्स आईं जो अपने घर से सिर्फ जरूरी सामान की खरीदारी के लिए निकलते थे और इससे बचाव के सारे नियमों का पालन भी करते थे, फिर भी कोरोना ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। इसके बावजूद ज्यादातर लोगों में इसे लेकर बेहद लापरवाही है। वे किसी कोरोना पॉजिटव व्यक्ति को भले ही हिकारत की नजरों से देखते हों लेकिन खुद को और अपने परिवार को इससे बचाने के लिए कुछ नहीं करेंगे।
बाजारों में बेतहाशा भीड़ है, वो जनता जो प्रधानमंत्री के एक बार कहने पर दिया जलाने और थाली बजाने के लिए समय होने का इंतजार कर रही थी, उनके हजार बार कहने पर भी मास्क और 2 गज की दूरी का नियम नहीं मान पा रही है। बाजार में आप किसी से दूर हटने की कोशिश करें तो लोग ऐसे देखते हैं जैसे न जाने क्या गुनाह कर दिया हो। ऐसे में जो लोग वाकई इस बीमारी को लेकर सजग हैं और इससे बचना चाहते हैं एक तो उनके सारे प्रयास विफल हो जाते हैं, दूसरा उनका भी संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है।
कोरोना इस दौर का सबसे बड़ा संकट है। इसमें लोगों को एकजुट होने की जरूरत थी। इस चुनौती से लड़ने की जरूरत थी, जिन देशों ने अच्छा काम किया उनसे सबक लेने की जरूरत थी, लेकिन हम सिर्फ लापरवाही करते रहे। हम में से ज्यादातर ने खुद सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं अपना रहे हैं, लेकिन कोरोना संक्रमितों को जी भरकर कोस रहे हैं। हमें इस बात को समझना होगा कि ये सबसे बड़ा संकट जरूर है लेकिन जीवन का अंत भी नहीं है। और हम सब को यह बात अपने मन-मस्तिष्क में डालनी पड़ेगी कि कोरोना से लड़ कर भी लोग स्वस्थ हो रहे हैं, बल्कि स्वस्थ होने वालों की संख्या बीमार होने और मरने वालों से अधिक हो रही है। इनमें छोटे बच्चे से लेकर अस्सी साल के वृद्ध भी शामिल हैं। दुर्भाग्य यह है कि कोरोना को लेकर समाज में जागरूकता के बजाए डर ज्यादा बैठ गया है, जिस वजह से इस संक्रमण के बढ़ने कि संभावना भी बढ़ती जा रही है।
समाज में कोरोना संक्रमित लोगों को जिस तरह की कुंठा और हीं भावना से देखा जा रहा है, वह बुरा है। इससे न केवल संक्रमित व्यक्ति, बल्कि पूरे समाज के लिए खतरा बढ़ रहा है। कई लोग ऐसे हैं जो कोरोना पीड़ितों के साथ हो रहे बर्ताव को देख कर अन्य लोग अपनी जांच कराने से भी डर रहे हैं। उन्हें डर है कि अगर वे भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए तो उनके साथ ही ऐसा ही बर्ताव होगा और इस वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसी जद्दोजहद में कई लोगों की बीमारी भी खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है। ऐसे में महज सरकार को दोष दे देना ठीक नहीं है।
एक बहुत पुरानी कहावत है - ‘जाके पैर न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई’। यानि जब तक खुद पर नहीं बीतती है, तब तक दूसरों का दर्द समझ नहीं आता, लेकिन ये वो चीज नहीं है जो खुद पर बीते तभी आप सजग हों, दूसरों की मुश्किलें समझें। इसके लिए बस यही है कि आप खुद के लिए सजग रहें और जो संक्रमित हैं उनके साथ अच्छा व्यवहार करें। वो कहते हैं न कि जिस्म पर चोट लगे तो ठीक हो जाती है लेकिन मन पर लगी चोट को भरने में वर्षों बीत जाते हैं, तो इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को वर्षों तक तड़पने के लिए अभी से जमीन पर तैयार करिए। समाज जब तक अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता, सरकार के अच्छे प्रयास भी विफल हो जाएंगे। हमारे मोबाईल की कॉलर ट्यून में तो हम रोज सुनते हैं कि हमें ‘बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं’, लेकिन समाज ठीक इसका उलट कर रहा है। ऐसे में बीमार व्यक्ति का मनोबल टूटने लगता है और वो न चाहते हुए भी और ज़्यादा इसकी चपेट में आने लगता है।
सिर्फ संक्रमित ही नहीं, न जाने कितने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोरोना की वजह से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हर वक्त मन में एक घबराहट सी होती रहती है, डर बना रहता है कि अगर उन्हें भी कोरोना हो गया तो क्या होगा। ये डर इसी वजह से है क्योंकि यहां बीमारी को नहीं बीमार को लोग बुरी नजरों से देखते हैं। खुद हर वक्त लापरवाही करते हैं और उस पर लापरवाही का आरोप लगाते हैं। कोरोना के खिलाफ जब तक कोई वैक्सीन नहीं या जाति तब तक इससे बचाव ही इकलौता रास्ता है। ऐसे में जनता और सरकार दोनों को अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी, और वो भी सबको साथ ले कर। सरकार को अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर करने की जरूरत है ताकि ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करके लोगों को बचाया जा सके।
एक और चीज शुरुआत में जब कोरोना फैला था तब संक्रमित के घर के आस-पास का एरिया सील कर दिया जाता था लेकिन अब तो हाल ये है कि जिस घर में पॉजिटिव मिल रहे हैं उसके भी बाकी सदस्यों का टेस्ट नहीं हो रहा। ये बेहद गलत है। अगर सरकार वाकई चाहती है कि दुनिया का ये सबसे बड़ा संकट खत्म हो तो उसे अपनी जिम्मेदारी बेहतर ढंग से निभानी होगी। सरकार को गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों के लिए कम कीमत में मास्क और सैनिटाइज़र उपलब्ध करवाने चाहिए और जागरूकता बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास करने चाहिए। लॉकडाउन के दौरान अनेकों स्वयंसेवी संस्थाओं ने गरीबों और जरूरतमंदों की काफी सहायता की। जब सब मिलकर एक साथ इसे शारीरिक और मानसिक स्तर पर मात देने का प्रयास करेंगे तो यकीनन ये हारेगा और देश जीतेगा।
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