जान से बढ़कर नहीं है 'नंबर्स की रेस'

बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। एक बार फिर से बच्चों के दिमाग में 'नंबरों की रेस' तेज हो जाएगी। अभिभावक भी अपने बच्चों पर परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के लिए गैरजरूरी दबाव बनाने लगेंगे। कुछ बच्चे इस रेस में आगे निकल जाएंगे और कई ऐसी अवसाद की दुनिया में पीछे छूट जाएंगे, जहां से निकलना बेहद मुश्किल होता है। आज हम नंबरों की इस रेस के बारे में बात करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि क्यों यह हमारे समाज की एक बेहद चिंताजनक प्रवृत्ति के रूप में बनकर उभरी है। एक बात जो सबसे अहम है कि अच्छे मार्क्स लाने का दबाव 90 प्रतिशत परिवार के बड़े सदस्यों की ओर से ही बच्चों पर बनाया जाता है। हम अपनी अपेक्षाओं का बोझ इस हद तक बच्चों के ऊपर लाद देते हैं कि वह जिंदगी की दौड़ में सही से आगे नहीं बढ़ पाते। अभिभावकों को यह बात अच्छे से जान लेनी चाहिए कि नंबरों की इस लड़ाई का वास्तविक जिंदगी से कोई लेना-देना नहीं है। उनके लाड़लों की जान की तुलना परीक्षा के नंबरों से कतई नहीं की जा सकती।

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जान से बढ़कर नहीं हैं अच्छे मार्क्स
अभिभावकों के लिए एक बात समझना सबसे जरूरी है कि अच्छे मार्क्स उनके बच्चों की जान से ज्यादा कीमती नहीं हैं। हम अपने बच्चों को अच्छे स्कूली दुनिया की गैरजरूरी नंबरों की रेस में दौड़ा रहे हैं। जिनका बच्चों के दिमाग पर नकारात्मक असर हो रहा है। अच्छे नंबर न ला पाने पर बच्चे के दिमाग में यह बात हावी होने लगती है कि वह अपने अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया।
यह अपेक्षा उनके मन को गहराई तक प्रभावित करती है, इस बारे में वह अभिभावकों से खुलकर बात भी नहीं कर पाते और मन ही मन घुटते रहते हैं। आखिरकार वह आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। 2015 की एक रिपोर्ट की बात करें तो 32 प्रतिशत युवाओं ने खुदकुशी की थी, जिसमें से अधिकतर परीक्षा के दबाव के चलते जिंदगी गंवा बैठे थे। अभिभावकों को यह बात समझनी चाहिए कि केवल परीक्षा में अच्छे नंबर लाना जिंदगी में आगे बढ़ने की गारंटी नहीं होती। बच्चों की जान की कीमत की तुलना उनके मार्क्स से नहीं की जा सकती।

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चौंकाने वाले हैं आंकड़े
देश में खुदकुशी एक बड़ी समस्या का रूप लेती जा रही है। इसमें बड़ी संख्या में छात्रों का भी प्रतिशत है। एक रिपोर्ट की बात करें तो वर्ष 2015 में 01 लाख 33 हजार लोगों ने खुदकुशी की थी। जिसमें युवाओं की संख्या 33 प्रतिशत थी। वहीं, इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दौरान करीब साढ़े नौ हजार युवा ऐसे थे जो छात्र थे। देश में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या कर अपना जीवन समाप्त कर रहा है। इसके पीछे कहीं न कहीं परीक्षा को लेकर बनाया गया दबाव ही जिम्मेदार है।
गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि छात्रों और युवाओं की आत्महत्या का एक बड़ा कारण परीक्षा में अच्छे मार्क्स पाने का दबाव भी है। यह आंकड़े भले ही डराते हों, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इन पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता। अभिभावक कुछ बातों का ख्याल रखकर अपने बच्चों को अवसाद की दुनिया में जाने से बचा सकते हैं।
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इस तरह से बढ़ाएं बच्चों का हौसला
- अभिभावकों को बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करना चाहिए, लेकिन दबाव नहीं बनाना चाहिए। उनके सामने खुद एक उदाहरण बनें। बच्चों के सामने आप अपनी पसंद की किताबें पढ़ें इससे उनके मन में भी किताबों के प्रति रुचि बढ़ेगी। बच्चों पर दबाव को समझने के लिए उन दिनों को याद कीजिए जब आप भी छात्र और परीक्षा को लेकर किस तरह का दबाव महसूस करते थे।
- परीक्षा के वक्त जितना हो सके बच्चों पर से पढ़ाई का दबाव कम करने की कोशिश करें। बच्चों को बताएं कि वह परीक्षा के पहले केवल दोहराने का प्रयास करें न कि याद करने का। परीक्षा की तैयारियों में उनकी पूरी मदद करें, बच्चों के साथ वक्त बिताएं। उनकी किताबों को देखें और उन्हें यह अहसास दिलाएं कि वह जो भी पढ़ रहे हैं वह बेहद आसान है। थोड़ी से मेहनत कर इन विषयों में अच्छे किया जा सकता है।
- परीक्षा के एक दिन पहले बच्चों को पूरी तरह से तनाव मुक्त रखें। उनके सामने परीक्षा को किसी हौव्वा की तरह पेश न करें। हो सके तो उन्हें कहीं घुमाने ले जाएं उनके साथ वक्त बिताएं। परीक्षा की तैयारी को लेकर उनसे हल्की फुल्की बात करें।
- तमाम तरह की कोशिशों के बाद भी अगर बच्चा अच्छे मार्क्स नहीं ला पाता है तो उसे कतई बेइज्जत न करें। और न ही उसकी तुलना किसी अन्य बच्चे से करें। यह बच्चों के दिलोदिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- याद रखें यह ऐसा वक्त होता है जब बच्चों को अभिभावकों के सबसे ज्यादा मनोवैज्ञानिक सहयोग की जरूरत होती है। बच्चों को ढांढस बंधाइए कि उन्होंने परीक्षा में बेहद अच्छा प्रदर्शन किया है, अगर अगली बार वह थोड़ी और मेहनत कर लें तो जरूर सफल हो जाएंगे।
- परीक्षा में अच्छे मार्क्स न ला पाने की स्थिति में बच्चों को अकेला छोड़ने के बजाय उनका मनोबल बढ़ाएं। उनके सामने ऐसे लोगों का उदाहरण दें जिन्होंने परीक्षा के बजाय वास्तविक जिंदगी में अच्छा किया और समाज के लिए मिसाल बने।
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