पर्दे पर हर रंग को जी गए ‘चिंटू’
इरफान खान के जाने पर रात तक जैसे-तैसे यकीन कर ही पाया था कि आज सुबह आंख खोलने के बाद जैसे ही फोन चेक किया तो पहला मैसेज था ‘ऋषि कपूर इज नो मोर’। यकीन नहीं हुआ तो आंखें साफ कर दोबारा देखा। किसी दिन की ऐसी मनहूस शुरुआत सोच भी नहीं सकता। जेहन में ऋषि कपूर के ढेरों गाने बजने लगे। दिलफरेब मुस्कान वाला चेहरा आंखों के सामने से हट ही नहीं रहा है।
मुझे फिल्में देखने का बेहद शौक है। अपने होश संभालने से आज तक ऋषि कपूर की शायद ही कोई मूवी होगी जो मैंने न देखी हो। मुझे लगता है वह हमेशा अपनी पीढ़ी के सफलतम अभिनेताओं की श्रेणी में सबसे आगे की पंक्ति में शामिल रहे। टीवी पर उनकी फिल्मों को देखता था तो उनकी जगह खुद को रखकर जाने क्या-क्या ख्वाब बुनने लगता था।
उनकी आकर्षक पर्सनालिटी को देखकर सोचता था कि काश मैं भी उनकी तरह दिखता। आप खुद सोचिए कि जितनी खूबसूरत जोड़ी ‘बॉबी’ में डिंपल कपाड़िया के साथ थी वही बात ‘बोल राधा बोल’ में जूही चावला और ‘दीवाना’ में दिव्या भारती के साथ थी।
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लंबे समय तक उन पर उम्र को असर नहीं दिखा। 1973 में आई ‘बॉबी’ से 2000 की ‘कारोबार: द बिजनेस ऑफ लव’ तक लगभग 27 साल तक मैंने उन्हें लीड रोल्स में ही देखा। वैसे तो उन्होंने हर रोल को दमदार शानदार निभाया, लेकिन दूसरी ‘अग्निपथ’ में राउफ लाला का किरदार सबसे अलग रहा।
हमेशा से फिल्मों में लवर ब्वाॅय या सीधे-साधे दिखने वाले इंसान की छवि को जीने वाले ऋषि कपूर ने राउफ लाला के निगेटिव रोल में जो अदाकारी की, उसकी तुलना गब्बर सिंह, मोगैंबो, डॉ. डैंग, शाकाल जैसे किरदारों से की जा सकती है।
‘बरसात’ और ‘मेरा नाम जोकर’ के जरिये वह पर्दे पर तो आ चुके थे, लेकिन पहचान मिली ‘बॉबी’ से। और दर्शकों का जो प्यार ‘बॉबी’ के ‘राजा’ को मिला वो शायद ही इंडस्ट्री में किसी को मिला होगा। एक रईस युवा का गरीब लड़की के प्यार में पड़कर बगावत करना मुझे इतना अच्छा लगता है कि इसी वजह से न जाने कितने बार ‘बॉबी’ देखी है।
ऐसा नहीं है कि उनकी हर फिल्म हिट होती हो, कई फ्लॉप भी हुईं, लेकिन उन्होंने हर रोल को हर रंग को पर्दे पर जीवंत किया, ‘बॉबी’ का बगावती प्रेमी ‘राजा’ हो या ‘खोज’ में अपनी पत्नी की हत्या कर पुलिस को चकमा देने वाला पति ‘रवि कपूर’, ‘एक चादर मैली सी’ में अपनी प्रेमिका को छोड़कर भाभी से शादी करने वाला ‘मंगल’ हो या ‘अग्निपथ’ में लड़कियों को उठवा कर बेचने वाला ‘राउफ लाला’।
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उन्होंने हर रोल के साथ पूरा न्याय किया। हो सकता है कि मेरे इस तर्क से हर कोई सहमत न हो लेकिन मुझे लगता है कि राज कपूर की पीढ़ी के बाद ऋषि कपूर यानी चिंटू को फैंस का जितना प्यार मिला उतना उनके परिवार में किसी को नहीं मिला। उन्होंने एक फिल्म डायरेक्ट की थी ‘आ अब लौट चलें’, जिसमें लीड रोड अक्षय खन्ना ने किया था। याद कीजिए पूरी फिल्म अक्षय स्वेटर पहने ही दिखे थे।
जानते हैं क्यों, क्योंकि ऋषि कपूर को स्वेटर पहनना बहुत पसंद था। पर्दे पर रंग बिरंगे गोल गले के स्वेटर उनकी पहचान थे। उनकी बीमारी की खबर कई वर्षों से चल रही थी, लेकिन इलाज कराकर जब वह वापस आए तो लगा नहीं था कि वह इतनी जल्दी चले जाएंगे। यह भी इत्तेफाक है कि ‘डी-डे’ में उन्होंने और इरफान ने साथ काम किया था और दोनों के ही करेक्टर मर जाते हैं। असल जिंदगी में भी दोनों साथ चले जाएंगे इसका अंदाजा नहीं था।
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