अच्छा हुआ तुम गुमनाम रही, कोर्ट नहीं आई साध्वी!

हालांकि, अच्छा हुआ तुम गुमनाम ही रही साध्वी। अगर तुम्हारा कोई नाम होता, चेहरा होता तो सीबीआई कोर्ट के बाहर आतंक कर रही भीड़ तुम्हारे नाम का, तस्वीर का रेप कर रही होती। इंसाफ का रेप होता तो देख ही लिया हमने। एक ढोंगी बाबा को रेप का दोषी सबूत और कोर्ट मान चुके हैं, पर उसके अंधभक्तों की भीड़ न्याय को तार-तार करती रही।
जनता को आखिर क्या हो गया?
समझ नहीं आता कि 'मेरा भारत महान' वाली जनता को आखिर क्या हो गया है। नैराश्य में डूबने का मन करता है। एक रेपिस्ट के लिए लाखों लोग अपना घर-बार छोड़कर कानून हाथ में ले रहे हैं। न इन्हें अपने घर की फिक्र है, न बच्चों की और न ही अपने भविष्य की। यह कैसा लोकतंत्र बनाने की दिशा में हैं। या ये वाकई गुंडों की फौज है। ये सब खुद भी रेपिस्ट हैं। ये सब खुद भी हत्यारे हैं। इनके साथ कैसा सलूक किया जाना चाहिए?
साध्वी हम जानते हैं कि देर से मिला इंसाफ, इंसाफ नहीं होता। पर जरा सोचो कि कितनी औरतों की आबरू लुटती है और कितनी आवाज उठाती हैं और जो आवाज उठाती हैं, तो उनका क्या हश्र किया जाता है। तुमने तो महज एक खत लिखा था। 2002 में लिखा गया तुम्हारा खत ही तो है जो आज राम रहीम की हथकड़ी बन गया है।
तुम्हें खुश होना चाहिए कि इस कानून ने तुम्हें कोर्ट में नहीं पेश किया वर्ना उस खौफनाक रात की कहानी तुमसे बार-बार अलग-अलग तरीके से पूछी जाती। हर सुनवाई में राम रहीम को बचाने की कोशिश कर रहा वकील तुम्हारा मानसिक रेप करता। यह ऐतिहासिक है। कितनी ही लड़कियों को इससे ताकत मिलेगी, जरा सोचो। सोचो, अगर आज तुम कोर्ट में होती और बाहर फैल रहे आतंक को महसूस कर रही होती तो तुम्हें कितना दुख होता।
इंडियावेव ऐसी खबरें नहीं करता, लेकिन यह भी एक इंडिया है। हम चाहते थे ऐतिहासिक जजमेंट की कहानी बताना लेकिन राम रहीम के गुंडों ने पंचकुला में जो किया है, उसके बाद लोकतंत्र की इस तस्वीर को हमेशा के लिए मेमोरी से डिलीट करने का मन करने लगा है।
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