नवनिर्माण के ‘अटल’ पथिक

हरीशचंद्र श्रीवास्तव (लेखक भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता हैं।)
भारत देश का सूर्य पुनः उगने का वह समय जब सन 1947 में देश को स्वतंत्रता मिली, तब 23 वर्षीय एक कवि हृदय युवा आधुनिक विराट भारत के सपने को बुनते हुए गीत गा रहा था ‘पंद्रह अगस्त का दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है, सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है।’ यही युवा संसार में अटल बिहारी बाजपेयी के रूप में विख्यात हुआ। यही वह समय था, जब सत्ताशीर्ष पर बैठे एक व्यक्ति के मनमौजीपन व नासमझी के कारण देश के एक महत्वपूर्ण भाग कश्मीर के एक भाग शत्रु देशों के हाथ में जाने, संसदीय परंपराओं के साथ छल करके शेष कश्मीर में अलगाववादी धारा 370, 35-ए थोपने, विकास नीति के स्थान पर परिवारवाद की नीति को शासनतंत्र का भाग बनाने का पाप करने आदि अनेक पच्छगामी घटनाएं हो रही थीं, तब इस युवक के ये शब्द ‘आग्नेय की इस घड़ी में आइये अर्जुन के जैसे उद्घोष करें, ‘न दैन्यं न पलायनम्’, जनता में आशा का संचार कर रहे थे।
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भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी की वाणी, शैली, व्यवहार और चिंतन था ही ऐसा कि सुषुप्तमना व्यक्ति को भी चेतन कर सृजन का वाहक बना दे। अटल जी राजनीति को दलगत और स्वार्थ से परे रखकर उदारवाद और समता के प्रबल समर्थक व वाहक रहे। शब्द ब्रह्म के उपासक रहे अटल जी की वक्तृत्व कला, राजनीतिक कौशल और प्रशासनिक दक्षता की प्रंशसा उनके समर्थक जितना करते थे, उससे कहीं अधिक विपक्षी दल के नेता और राजनीतिक विरोधी उनके इन सद्गुणों से प्रभावित थे।
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यही कारण था कि जब इस देश में कांग्रेस सरकार ने आपातकाल लगाकर लोकतंत्र की हत्या का प्रयास किया, तो अटल जी दलगत भावना से ऊपर उठकर पूरे देश को स्वर देने लगे। जनसंघ के नेता के रूप में अपने कार्यकर्ताओं की भावना तो वो व्यक्त करते ही थे, अन्य राजनीतिक दलों ने भी उन्हें एक प्रकार से अपना प्रवक्ता बना लिया। तब अटल जी ने ‘झुक नहीं सकता‘ शीर्षक से कविता लिखकर उन सबमें ऊर्जा का संचार करते हुए स्वर दिया था, ‘किंतु फिर भी जूझने का प्रण, अंगद ने बढ़ाया चरण, प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार, समर्पण की मांग अस्वीकार।’
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पाठशाला में राष्ट्रवाद का पाठ पढ़कर भारत माता को पुनः परम वैभव के शिखर पर पहुंचाने का संकल्प लेने वाले अटल जी ने तत्कालीन सरकार की निरंकुशता, दमन और जनविरोधी नीतियों की पीड़ा न केवल अनुभव की थी, अपितु वे देश के निरंतर पीछे जाने को लेकर चिंतित रहे। इस चिंता ने उनके राष्ट्रोत्थान के संकल्प को और सुदृढ़ कर दिया। 47 वर्षों तक सांसद रहते हुए वे निरंतर अंत्योदय व शक्तिशाली भारत बनाने के सपने को साकार करने के लिये चिंतन व मनन के साथ ही कार्य करते रहे।

1977 से 1979 तक भारत के विदेश मंत्री के पद को सुशोभित करने पर श्रद्धेय अटल जी की कूटनयिक कौशल और विदेश नीति ने यह झलक दिखा दी थी कि भारत माता को परम वैभव के सिंहासन पर पुनः विराजमान करने का उनका संकल्प राष्ट्रोत्थान के लक्ष्य-पथ को निश्चित ही एक नया आयाम देगा। 1996 में 16 दिन की सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री बनने के बाद, 1998 में जब अटल जी बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता पर आरूढ़ हुए, और वे भारत के पहले गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। इसके बाद उनका पांच वर्ष का कार्यकाल आधुनिक भारत के निर्माण के ऐतिहासिक कार्यों का साक्षी बना।
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अटल जी के नेतृत्व में 11 और 13 मई, 1998 के दिन भारत ने राजस्थान के पोखरण में पांच परमाणु परीक्षण किये। उन्होंने विश्व की महाशक्तियों के विरोध के बाद भी भारत को परमाणुशक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाने का ऐसा साहसी निर्णय लिया, जिसने भारत को वैश्विक सामरिक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। इस परीक्षण के बाद अमरीका सहित कई बड़े देशों ने भारत को आर्थिक व सैन्य प्रतिबंध लगाकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने का प्रयास किया, किंतु अटल सरकार की नीतियों व कार्यक्रम से देश और सुदृढ़ व सबल होकर उभरा, जिसका परिणाम यह हुआ कि अमरीका और विश्व की अन्य महाशक्तियों ने भारत के महत्व व शक्ति को समझते हुए न केवल प्रतिबंध को हटाया, अपितु भारत के पक्ष में और अधिक सहयोग करने लगीं। अटल जी समझते थे कि भारत को अग्रणी बनाना है तो सड़क और संचार का विकास व संजाल एवं सैन्य सशक्तिकरण ही इसके आधार बनेंगे। इसलिये उन्होंने भारत की सेना को सशक्त बनाने के लिये अभूतपूर्व कार्य किया तथा सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों यथा रोहतांग सुरंग बनवायी तथा देश के उत्तरपूर्व व पाकिस्तान की सीमा से सटे क्षेत्रों में सैन्य अवस्थापना तैयार करने का कार्य प्राथमिकता के साथ प्रारंभ करवाया। अटल जी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को परास्त कर देश की सामरिक शक्ति की धाक समस्त विश्व में जमाई।
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उन्होंने सड़क और संचार को विशेष प्राथमिकता देते हुए देश भर में फोर-लेन सड़कों का संजाल, रेल, वायु व जल मार्ग के विकास व संयोजन का ऐतिहासिक कार्य प्रारंभ किया। अटल जी पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गांव-गांव को पक्की सड़क से जोड़ने के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का प्रारंभ किया। राष्ट्रनिर्माण और जनसशक्तिकरण के कार्यों की उनकी सूची इतनी लंबी है कि उस पर कई अंकों की पुस्तक बन सकती है। पर इससे भी बड़ा उनका विराट व्यक्तित्व था, जिसने नीति, सिद्धांत और मर्यादा के उच्च प्रतिमान स्थापित किये। राजनीति में उनके धुर विरोधी भी उनके इस व्यक्तित्व व कार्यशैली पर मुग्ध थे। जीवन का प्रति पल देश, धर्म और लोक के लिये समर्पित करने का उदाहरण देखना हो तो अटल जी के जीवन को देखना चाहिये। एक बार उन्होंने कहा था, ‘मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है।’ उनके शब्द, उनकी कविताएं, उनके कार्य और उनकी जीवन शैली प्रेरणा का वो पुंज है, जिसे पाकर व्यक्ति जीवन के वास्तविक लक्ष्य लोककल्याण के पथ का अनुगामी बन जाता है और भय, संताप, विषाद से मुक्त होकर स्वयं भी आनंद का पथिक बन जाता है तथा औरों का भी मंगल करता जाता है।
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