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तो क्या टीम इंडिया वर्ल्ड कप-2019 जीतने जा रही है?

06 March 2019

क्रिकेट प्रशंसक दिल थामकर 04 साल तक वर्ल्ड कप का इंतजार करते हैं। इस बार उनका इंतजार 30 मई को खत्म होगा, जब वर्ल्ड कप 2019 का पहला मैच मेजबान इंग्लैंड और दक्षिणी अफ्रीका के बीच खेला जाएगा। इस बार वर्ल्ड कप में 10 टीमें हिस्सा ले रही हैं, जिसमें टीम इंडिया भी शामिल है। आज हम टीम इंडिया की वर्ल्ड कप में ट्रॉफी जीतने की संभावनाओं के बारे में बात करेंगे। इंडिया के वर्ल्ड कप जीतने के चांस इस बार सबसे ज्यादा माने जा सकते हैं। इसके कई कारण भी हैं। प्रमुख कारणों की बात करें तो इस बार टीम इंडिया अभी तक के सबसे अच्छे फॉर्म में चल रही है। वर्ल्ड कप में हिस्सा ले रहीं बड़ी टीमों को टीम इंडिया वर्ष 2018-19 में धराशायी कर चुकी है। इसमें मौजूद समय में चल रही आस्ट्रेलिया के साथ सीरीज को भी जोड़ा जा सकता है, जिसमें टीम इंडिया सीरीज जीतने से सिर्फ एक कदम दूर है।

सरकार​ किसी की भी हो, लोकतंत्र की मजबूती के लिए सवाल पूछे जाने जरूरी हैं

18 February 2019

किसी भी देश का लोकतंत्र तभी मजबूत होगा, जब उस देश की हुकूमत वहां की जनता के सवालों के जवाब सही तरीके से दे। अगर कोई भी एक सरकार जनता के सवालों के जवाब न देकर उससे मुंह चुराएगी तो आने वाले समय में जो सरकारें होंगी निश्चित तौर पर वो भी ऐसा ही करेंगी। इसलिए मजबूत लोकतंत्र के लिए सवालों का पूछा जाना जरूरी है।

पुलवामा आतंकी हमले के बाद गुस्से में हैं तो करिए ये 10 काम, सीधे तौर पर कर पाएंगे देश की मदद

16 February 2019

पुलवामा आतंकी हमले में सीआरपीएफ के मृतक जवानों के पार्थिव शरीरों का अंतिम संस्कार हो चुका है। आतंकी हमले में मृतक जवानों के परिजनों का इस समय क्या हाल होगा, शायद हम लोग उसके इर्द-गिर्द भी न पहुंच पाएं। क्योंकि जो कोई अपने को खोता है, वो ही इसका दर्द महसूस कर पाता है। ठीक वैसे ही जब कोई हमारा हमसें दूर चला जाता है तो सिर्फ हम ही वो दर्द महसूस कर पाते हैं।

शराब, सिगरेट और सेक्स से इतर भी है फेमिनिज्म

08 February 2019

फेमिनिज्म, ये आजकल खुद को प्रगतिशील दिखाने का सबसे बड़ा हथियार है। आप महिला हैं या पुरुष, अगर आप फेमिनिस्ट हैं तभी माना जाएगा कि आप अच्छे व्यक्ति हैं और आज के जमाने के साथ कदमताल कर रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है तो आप पर रूढ़िवादी होने और आधी आबादी को दबाकर रखने का टैग चस्पा कर दिया जाएगा। अब आप सोच रहे होंगे कि फेमिनिस्ट होना तो अच्छी बात है। महिलाओं के हक के लिए लड़ने और उन्हें बराबरी का अधिकार दिलाने की जिम्मेदारी तो हर व्यक्ति की है, ऐसे में हर किसी को फेमिनिस्ट होना चाहिए, तो हां, ये बिल्कुल सही बात है। बात अगर महिलाओं के सही हक और रुतबे की है तो हर किसी को फेमिनिस्ट होना चाहिए, लेकिन आजकल फेमिनिज्म की वो पुरानी परिभाषा बदल चुकी है, जिसमें समान वेतन, समान अधिकार, समान पद जैसी बातें होती थीं। आजकल फेमिनिज्म इससे कहीं आगे बढ़कर शराब, सिगरेट, सेक्स और छोटे कपड़ों पर आकर टिक गया है। 

जान से बढ़कर नहीं है 'नंबर्स की रेस'

08 February 2019

बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। एक बार फिर से बच्चों के दिमाग में 'नंबरों की रेस' तेज हो जाएगी। अभिभावक भी अपने बच्चों पर परीक्षा में अच्छे नंबर लाने के लिए गैरजरूरी दबाव बनाने लगेंगे। कुछ बच्चे इस रेस में आगे निकल जाएंगे और कई ऐसी अवसाद की दुनिया में पीछे छूट जाएंगे, जहां से निकलना बेहद मुश्किल होता है। आज हम नंबरों की इस रेस के बारे में बात करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि क्यों यह हमारे समाज की एक बेहद चिंताजनक प्रवृत्ति के रूप में बनकर उभरी है। एक बात जो सबसे अहम है कि अच्छे मार्क्स लाने का दबाव 90 प्रतिशत परिवार के बड़े सदस्यों की ओर से ही बच्चों पर बनाया जाता है। हम अपनी अपेक्षाओं का बोझ इस हद तक बच्चों के ऊपर लाद देते हैं कि वह जिंदगी की दौड़ में सही से आगे नहीं बढ़ पाते। अभिभावकों को यह बात अच्छे से जान लेनी चाहिए कि नंबरों की इस लड़ाई का वास्तविक जिंदगी से कोई लेना-देना नहीं है। उनके लाड़लों की जान की तुलना परीक्षा के नंबरों से कतई नहीं की जा सकती।

योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का बढ़ता 'साम्राज्य'

07 February 2019

अपनी भाषा से विपक्षियों पर तीखा प्रहार करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस समय भाजपा के स्टार प्रचारक बन गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बाद उनकी रैलियों में जिस तरीके का जनसैलाब उमड़ता है, उससे भाजपा में उनका कद काफी बढ़ गया है। तीखे प्रहारों की वजह से योगी आदित्यनाथ सिर्फ जनता ही नहीं बल्कि प्रत्याशियों में काफी डिमांड है। उनकी ऊर्जा को देखते हुए चुनावों में उनकी छवि बीजेपी के एक बड़े ब्रैंड के तौर पर उभरी है। अपनी इस ऊर्जा से उन्होंने भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को पीछे छोड़ दिया है। उनकी लोकप्रियता की वजह से ही अब भाजपा नेतृत्व भी उनको रैलियों के लिए आगे बढ़ा रहा है।

छात्रसंघ के मुंह पर है तमाचा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र रजनीश की आत्महत्या

31 January 2019

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बी.ए. प्रथम वर्ष के छात्र ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि विश्वविद्यालय और मकान मालिकों की अराजकता का वो बर्दाश्त नहीं कर सका। आजमगढ़ से अपने सपनों की पोटली को लेकर आया रजनीश उस पोटली को यूं ही छोड़ गया। रजनीश के ख्वाब तो होंगे ही जो अब उसके साथ ही दुनिया से विदा ले चुके हैं। पर सवाल यही है कि आखिर एक छात्र की सुनने वाला उस शहर में कोई क्यों नहीं था? ये उम्र तो अपने सपनों को तराशने की थी फिर आखिर प्रयागराज (इलाहाबाद) जैसे शहर में उसके दर्द को क्यों नहीं समझा गया? इलाहाबाद विश्वविद्यालय और मकान मालिकों ने अगर उसके साथ अराजकता की तो वो छात्र नेता कहां गए ​जो रजनीश या रजनीश जैसों का वोट पाकर छात्रसंघ के अध्यक्ष बने थे।

आखिर किसके हैं हनुमान?

31 December 2018

देश की राजनीति में साल 2018 की शुरूआत 'नीच' से शुरू हुई थी और वर्ष के अंत तक आते-आते भगवान श्रीराम के सेवक और पवनसुत हनुमान की जाति पर पहुंच गई। राजस्थान के चुनावी समर में हनुमान जी की जाति बताने के बाद उनके नाम का चालीसा कुछ इस तरह से चला कि देशहित और विकास के मुद्दों को भूलकर देश के नेता उन्हें अपनी जाति से जोड़ने में लगे हुए हैं। हनुमान जी का राग कुछ इस तरह से चला है कि देश की राजनीति को नया मुद्दा मिल गया। हर दिन कोई न कोई नेता हनुमान जी को अपनी जाति और समुदाय से जोड़ ही देता है। अभी तक भक्ति साहित्य में राम नाम हनुमान के बिना न चलता रहा हो मगर राजनीति की बिसात पर बरसों से ‘जय श्री राम’ के नारों के बीच पवनपुत्र हनुमान की बात नहीं होती थी। लेकिन, राजस्थान के विधानसभा चुनाव में दलित वोटरों को रिझाने के लिए अलवर के मालाखेड़ा में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने हनुमान जी को दलित बताकर ऐसा राग छेड़ा कि उसके बाद उनकी पार्टी के ही नेता अपनी जाति से जोड़ने में लगे गए। 

हर घाट पर बसता है अलग बनारस

31 December 2018

पिछले साल 2017 की तपती दोपहरी में बनारस घूमने गया था। वहां रह रहे दोस्तों को फोन कर बताया कि बनारस में हूं, तो उनका सबसे पहला सवाल यही था कि भाई आए क्यों हो? इस सवाल ने थोड़ा असहज भी किया। भई, मई-जून की भीषण गर्मी में आमतौर पर इंसान शिमला, नैनीताल जैसी ठंडी जगहों पर जाने की सोचता है, इसलिए यह सवाल एक हद तक सही भी लगा। खैर इन बातों से आपको अभी तक यह पता नहीं चला होगा कि मैं बनारस घूमने क्यों गया था? दरअसल बनारस को करीब से देखने का हमेशा से ही मन था। यहां की प्रसिद्ध गंगा आरती, बेहतरीन खान-पान और घाटों को छूकर बहती गंगा नदी का विहंगम दृश्य देखने की चाह यहां खींच लाई थी।

गरीबों और महिलाओं को सम्मान से जीने का हक दिला रही मोदी सरकार

31 December 2018

आज हमारे देश में गरीबों और महिलाओं को सम्मान से जीने का हक मिला है। आज लगभग हर उस गरीब का घर जहां लाइट नहीं थी वह जगमगा रहा है और लगभग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली हर वो गृहणी जो चूल्हे में खाना बनातीं थी वो आज एलपीजी गैस में खाना बना रहीं है। आजादी के कई दशकों बाद भी गरीब के घर शाम होते ही अंधेरे में ही रहते थे और महिलाओं को बस घर का चूल्हा जलाने के लिए जंगल में जाना पड़ता था, लकड़ी इकठ्ठा करनी पड़ती थी। पर 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही इन समस्याओं से निपटने के लिए रास्ते खोज लिए थे।प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों और महिलाओं को होने वाली समस्याओं से निजात दिलाने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की जिनमें हर गरीब के घर लाइट पहुंचे इसके लिए सौभाग्य योजना और हर वो गरीब महिला जो खाना बनाने के लिए चूल्हा जलाती थी जिससे उसे कई तरह की समस्याओं से गुजरना पड़ता था इसके लिए उज्ज्वला योजना की शुरुआत की।   देश के गरीब परिवारों की महिलाओं को चूल्हे पर लकड़ी या कोयले से खाना बनाने से मुक्ति के मकसद से 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से उज्ज्वला योजना का प्रारंभ किया। इसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले पांच करोड़ परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था। इस योजना के लिए मंत्रिमंडल ने आठ हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी। यह योजना 2019 तक पूरा करने की है जिसके तहत सभी गरीबी रेखा के नीचे आने वाले व्यक्तियों के पास गैस कनेक्शन उपलब्ध कराना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा है कि उज्‍जवला योजना के तहत अब तक ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग चार करोड़ महिलाएं एलपीजी कनेक्‍शन हासिल कर चुकी हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 यानी केंद्र में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से अब तक चार वर्षों में कुल मिलाकर लगभग 10 करोड़ नए एलपीजी कनेक्‍शन जारी किए जा चुके हैं जबकि वर्ष 1955 से 2014 के बीच के छह दशकों में महज 13 करोड़ एलपीजी कनेक्‍शन ही जारी किए गए थे।

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