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ब्लॉग

international labour day 2021

मुल्क के मुकद्दर को संवारते मजदूर

01 May 2021

दिलीप अरुण "तेम्हुआवाला"भारत के हरियाणा प्रदेश के भाटी माइन्स में काम करने वाले मज़दूर हों या बिहार के कैमूर की तपती पहाड़ी के नीचे पत्थर काटने वाले मज़दूर। उड़ीसा, महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान के बॉक्साइट खदानों में काम करने वाले मज़दूर हों या सांप-बिच्छू के संग खेत-खलिहानों में काम करने वाले मज़दूर। बिहार के भभुआ स्थित भुड़कुड़ा पहाड़ी के खदानों, केरल, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के नमक की खानों में काम करने वाले मज़दूर हों या अंडमान-निकोबार, पुडुचेरी, सिक्किम, लक्ष्यद्वीप, लद्दाख, दादरा-नगर हवेली, दमन-द्वीव, मिजोरम, नागालैंड तथा त्रिपुरा में जद्दोजेहद की ज़िंदगी जीने वाले मज़दूर -  ये सभी अपनी मेहनत की तिल्ली से देश की दहलीज़ पर समृद्धि का दीया जलाते हैं।

covid 19 pandemic

सांसें जरूरी या सियासत?

15 April 2021

आशुतोष शुक्ला, सीनियर टीवी जर्नलिस्टये सच है कि, जब हम अपनों या किसी परिचित के अपनों को खोते हैं, तभी आपको कोविड की गंभीरता का अहसास ज्यादा होता है। वर्ना कोविड केस की संख्या सिर्फ एक नंबर भर है। खास तौर पर हमारे जैसे मीडियाकर्मियों के लिए, जो एक साल से रोज यही बताते और लिखते आ रहे हैं। चाहें ये संख्या लाख में हो या हजारों में। आज दोपहर पता चला कि, लंबे समय तक साथ काम करने वाले साथी सुधीर पांडेय की मां का निधन लखनऊ में कोविड से हो गया है।

mamta banerjee

किस्सा पहियों वाली कुर्सी का

06 April 2021

आनंद श्रीवास्तववरिष्ठ पत्रकारसाल 1977 में रिलीज ‘किस्सा कुर्सी का’ भारतीय सिने इतिहास की सबसे विवादास्पद फिल्म मानी जाती है। इंदिरा गांधी सरकार की चूलें हिला देने से लेकर इमरजेंसी के बाद हुए आम चुनावों तक में यह फिल्म बड़ा मुद्दा बनी। 1974 में बनी अमृत नाहटा की इस फिल्म पर 1975 में इमरजेंसी के दौरान बैन लगा दिया गया। प्रिंट तक जब्त कर लिए गए/जला दिए गए। आरोप था कि इस फिल्म में इंदिरा गांधी के साहबजादे संजय गांधी की सपनीली ‘मारुति’ कार का माखौल उड़ाया गया था।

atal bihari vajpayee

नवनिर्माण के ‘अटल’ पथिक

25 December 2020

हरीशचंद्र श्रीवास्तव  (लेखक भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता हैं।)भारत देश का सूर्य पुनः उगने का वह समय जब सन 1947 में देश को स्वतंत्रता मिली, तब 23 वर्षीय एक कवि हृदय युवा आधुनिक विराट भारत के सपने को बुनते हुए गीत गा रहा था ‘पंद्रह अगस्त का दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है, सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है।’ यही युवा संसार में अटल बिहारी बाजपेयी के रूप में विख्यात हुआ। यही वह समय था, जब सत्ताशीर्ष पर बैठे एक व्यक्ति के मनमौजीपन व नासमझी के कारण देश के एक महत्वपूर्ण भाग कश्मीर के एक भाग शत्रु देशों के हाथ में जाने, संसदीय परंपराओं के साथ छल करके शेष कश्मीर में अलगाववादी धारा 370, 35-ए थोपने, विकास नीति के स्थान पर परिवारवाद की नीति को शासनतंत्र का भाग बनाने का पाप करने आदि अनेक पच्छगामी घटनाएं हो रही थीं, तब इस युवक के ये शब्द ‘आग्नेय की इस घड़ी में आइये अर्जुन के जैसे उद्घोष करें, ‘न दैन्यं न पलायनम्’, जनता में आशा का संचार कर रहे थे।

modi

मोदी में कुछ तो बात है, विपक्ष को सियासत के गुर उनसे सीखने चाहिए

19 September 2020

आशुतोष शुक्ला, सीनियर प्रोड्यूसर, न्यूज़ 18मेरी इस पोस्ट को सियासी चश्मे से ना पढ़ें। पक्ष या विपक्ष छोड़िए, बात से सहमत हों तो ठीक, नहीं होंगे तो असहमति जताने के लिए आप स्वतंत्र हैं। सबसे पहले पीएम मोदी को जन्मदिन की बधाई।. यही कामना है कि, आपके विज़न में जो काम अभी प्रॉसेस में हैं, उन्हें आप जल्द से जल्द पूरा कर सकें। इस लाइन को पढ़कर मुझे भक्त करार देने की जल्दबाजी ना करें। काम की बात अब शुरू होने जा रही है। ये तो भूमिका थी।

ram mandir, rafale, riya

‘आर’नाम की लूट है, लूट सके तो लूट

06 August 2020

आनंद श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकारआरके यानी राज कपूर के निर्देशन में साल 1985 में एक फिल्म आई थी, ‘राम तेरी गंगा मैली’। मंदाकिनी और राजीव कपूर अभिनीत इस फिल्म के वैसे तो सभी गाने हिट हुए थे, पर रवींद्र जैन के संगीत निर्देशन में रिकार्ड हुआ गाना...’सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन’ की बात ही कुछ और थी। पैंतीस बरस बाद, एक बार फिर ‘आर’ की बहार है। माफ कीजिएगा हिंदी के ‘र’ की जगह हम अंग्रेजी के ‘R’ का सहारा ले रहे हैं। इस बार बस कलेवर थोड़ा बदला हुआ है, सो अबकी बार..’सुन साहिबा सुन,  ‘आर’ की धुन’।अब ‘आर’ बोले तो राम मंदिर,  राफेल, रिया चक्रवर्ती......।  नित नई ज्ञान गंगा बहाने वाले अपने ....बाबा तो हैं ही। आप तय कीजिए कि बाबा को आरडी मानेंगे या आरजी। अब आरडी और आरजी का मतलब समझाने की जिद ना कीजिएगा। कुल मिलाकर यह कि, जहां भी नजर घुमाइये, ‘आर’ की बयार है। सच कहें तो कई बार ‘आर’ , कोविड-19 पर भी भारी नजर आता है। कम से कम अपने देश में तो ऐसा ही है। यह सिर्फ हम नहीं कह रहे, खबरिया चैनलों की कवरेज भी इस बात की तसदीक करती है।

Corona Positve

'हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं'

25 July 2020

पूरी दुनिया के लोग कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं। हर दिन इससे संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। हर जगह दहशत का माहौल है। लेकिन इस बीच एक बड़ी अजीब चीज मैंने महसूस की है। यहां लोग कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति को बड़ी अजीब तरह से देखते हैं, ऐसा लगता है जैसे उसने कोई गुनाह-ए-अजीम कर दिया हो। मीडिया में ऐसे कई लोगों के बारे में रिपोर्ट्स आईं जो अपने घर से सिर्फ जरूरी सामान की खरीदारी के लिए निकलते थे और इससे बचाव के सारे नियमों का पालन भी करते थे, फिर भी कोरोना ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। इसके बावजूद ज्यादातर लोगों में इसे लेकर बेहद लापरवाही है। वे किसी कोरोना पॉजिटव व्यक्ति को भले ही हिकारत की नजरों से देखते हों लेकिन खुद को और अपने परिवार को इससे बचाने के लिए कुछ नहीं करेंगे। 

covid 19

‘कयामत से कयामत तक-2’

10 July 2020

आनंद पी श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकारसाल 1988 में एक फिल्म आई थी, कयामत से कयामत तक। इंडिया और काफी हद तक साउथ एशिया में, टीनएजर्स और यंगस्टर्स के बीच इस सुपरहिट फिल्म ने 'क्यूएसक्यूटी'  के तौर पर भी अपनी पहचान बनाई। इस फिल्म का एक गाना सुपरहिट हुआ था... अकेले हैं, तो क्या गम है, चाहें तो हमारे बस में क्या नहीं...। आज नौजवान होती पीढ़ी को शायद यह पता ना हो कि मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे इस गीत को आवाज दी थी अलका अलका याग्निक और उदित नारायन ने। घरों, सड़कों, गलियों, चाक-चौबारों में या फिर स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में हर किसी की जुबान पर यह गाना चढ़ा और खूब चढ़ा, लेकिन तब यह शायद किसी को नहीं पता था कि उतरेगा कब। फोर्टीज और फिफ्टीज की हो रही उस पीढ़ी के लोगों के कान में आज भी यह गाना पड़ जाता है तो, उन्हें गुनगुनाते देखा/सुना जा सकता है।

sushant singh rajpoot

बॉलीवुड, नेपोटिज्म, सुशांत सिंह, कंगना रनौत और आप

16 June 2020

बीते दिनों हिंदुस्तान के तीन बड़े फिल्मी सितारों एक्टर इरफान खान (irfan khan), ऋषि कपूर (rishi kapoor), संगीतकार वाजिद खान (wajid khan) की मौत हो गई, लोग अभी इस घटना को भुला ही नहीं पाये थे कि अचानक एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (sushant singh rajpoot) की आत्महत्या ने सबको हिलाकर रख दिया। अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ हर किसी का दिल लूट लेने वाले सुशांत सिंह (sushant singh) का ऐसा करना हर किसी को अब ये सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर सुशांत ने आत्महत्या की क्यों?इस सवाल का जवाब अभी उनके चाहने वाले अपने मन में ढूंढ ही रहे थे कि अचानक बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत (kangna ranaut) ने सुशांत की मौत का कारण 'नेपोटिज्म' (nepotism) बता दिया, जिसके बाद से सुशांत के चाहने वालों ने ट्वीटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर सुशांत की मौत के जिम्मेदार लोगों को सजा देने और उनके बॉयकॉट की गुहार लगाने लगे।

irrfan khan

अभिनेता तो नहीं, क्या हम इरफान जैसे इंसान भी बन सकते हैं?

01 May 2020

रोहित मिश्र, पत्रकार, फिल्म समीक्षक  हम-आप जैसे लाखों मिडियोकर लोग अपने सिस्टम में खुद की 6 दिन या 6 हफ्ते की उपेक्षा भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। खुद की उपेक्षा करने वाले उस सिस्टम को लेकर एक टॉक्सिक हमारे मन में पलने लगता है। ये तेजाब सिस्टम का कुछ बिगाड़ या संवार तो नहीं पाता लेकिन यह हमें खुद ही गलाने लगता है। दिमाग और पर्सनाल्‍टी दोनों स्तरों पर। उपेक्षा की कुंठा बहुत हद तक प्रतिभा का गला घोट देती है।अब आइए इरफान की जिंदगी को देखें। एक कलाकार के रुप में उसे अभिनय करते हुए नहीं बल्कि एक व्यक्ति के रुप में। देखें उसके धैर्य को और अपने प्रोफेशन को लेकर उसकी प्रतिबद्धता और अदब को।

सोसाइटी से

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