हनुमान जी के वृद्ध / बूढ़े रूप को समर्पित है। यह उत्सव भाद्रपद / भादौं माह के अंतिम मंगलवार को आयोजित किया जाता है। जिसे प्रचलित भाषा में बूढ़े मंगल के नाम से भी जाना जाता है। नगला खुशहाली में 300 साल पुराने हनुमान बरी परिसर में यह त्यौहार बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
बुढ़वा मंगल उत्तर भारत में ज्यादा प्रमुखता से मनाया जाता है। कहीं-कहीं यह त्यौहार ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार को मनाया जाता है, जिनमे कानपुर एवं वाराणसी प्रमुख हैं।
ये हैं मान्यताएं
माना जाता है कि महाभारत काल में भीम के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान हनुमान ने एक बूढ़े बंदर का भेष धारण कर उनका घमंड चूर-चूर किया था। हनुमान के इसी अवतार की पुजा बुढ़वा मंगल को की जाती है।
ये भी माना जाता है कि रामायण काल में भाद्रपद महीने के आखिरी मंगलवार को माता सीता की खोज में लंका पहुंचे हनुमान जी की पूंछ में रावण ने आग लगा दी थी। हनुमान जी ने अपने विराट स्वरूप को धारण कर लंका को जलाकर रावण का घमंड चूर किया। इसलिए भादौं माह के अंतिम मंगलवार को बुढ़वा मंगल के रुप में मनाया जाता है।
बुढ़वा मंगल में ऐसे की जाती है पुजा अर्चना
बुढ़वा मंगल के दिन श्रध्दालु भगवान हनुमान के लिए दिनभर व्रत रहकर पूजा-कथा करते हैं। मंदिरों घरों में भजन-कीर्तन भी किया जाता है। खिचड़ी चढ़ाने की भी है परंपरा।
पंडितों द्वारा बताया गया है कि बुढ़वा मंगल के दिन किया गया दान-पुण्य अक्षय फल देता है। इस दिन सुबह स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही हनुमानजी, मंगल देव एवं शनिदेव की आराधना करनी चाहिए। इसके साथ ही काले तिल, चावल, उरद की दाल, अदरक एवं मूली का दान करें और बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाएं।
गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने बताया कि बुढ़वा मंगल के दिन खिचड़ी चढ़ाना उतना ही पुण्यकारी होता है, जितना मकर संक्रांति के दिन। इस दिन दूर-दूर से श्रद्धालु गोरखनाथ बाबा को खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। ऐसे श्रद्धालु जो मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी नहीं चढ़ा पाते, वे बुढ़वा मंगल का इंतजार करते हैं।