हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत का बहुत महत्व है। ज्येष्ठ महीने की अमावस्या केदिन वट सावित्री व्रत हर साल रखा जाता है। यह व्रत केवल सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं। यदि महिलाएं पहली बार वट सावित्री व्रत रखने वाली हैं तो वट सावित्री व्रत की पूजा के दौरान एक कथा सुननी होती है। इस कथा को सुनने से पति की लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ज्येष्ठ महीने की अमावस्या पर 6 जून को वट सावित्री व्रत मनाया जा रहा है और इसकी पूजा के लिए शुभ महूर्त 11 बजे के बाद ही बन रहे हैं।
वट सावित्री व्रत पर अगर आप पूजा करने जा रही हैं तो पूजा का शुभ समय अभिजीत मुहूर्त 11:52 से 12:48 बजे तक रहेगा। इसके अलावा भी 2 मुहूर्त और बन रहे हैं। लाभ-उन्नति मुहूर्त दोपहर 12:20 से 02:04 बजे तक रहेगा। अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त दोपहर 02:04 से 03:49 बजे तक है।
वट सावित्री व्रत की ये है पूजा विधि
- व्रती महिलाओं को वट सावित्री व्रत के दिन पूजा का संकल्प लें।
- फिर शुभ मुहूर्त में वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सामग्री एकत्र करके किसी बरगद के पेड़ के पास जाएं।
- पेड़ के नीचे ब्रह्म देव, देवी सावित्री और सत्यवान की मूर्ति को स्थापित करें। फिर उनका जल से अभिषेकर करें।
- उसके बाद ब्रह्म देव, सत्यवान और सावित्री की पूजा करें। एक-एक करके उनको पूजा सामग्री चढ़ाएं।
- फिर रक्षा सूत्र या कच्चा सूत लेकर उस बरगद के पेड़ की परिक्रमा 7 बार या 11 बार करते हुए उसमें लपेट दें।
- अब आप वट सावित्री व्रत की कथा सुनें. फिर ब्रह्म देव, सावित्री और सत्यवान की आरती करें।
वट सावित्री व्रत की कथा
स्कंद पुराण के अनुसार, वट सावित्री व्रत की कथा देवी सावित्री के पतिव्रता धर्म के बारे में है। देवी सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था, लेकिन उनकी अल्पायु थी. एक बार नारद जी ने इसके बारे में देवी सावित्री को बता दिया और उनकी मृत्यु का दिन भी बता दिया। सावित्री अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए व्रत करने लगती हैं। वे अपने पति, सास और सुसर के साथ जंगल में रहती थीं। जिस दिन सत्यवान के प्राण निकलने वाले थे, उस दिन वे जंगल में लकड़ी काटने गए थे, तो उनके साथ सावित्री भी गईं थीं।
जिस दिन सत्यवान के प्राण जाने वाले थे, उस दिन सत्यवान के सिर में तेज दर्द होने लगा और वे वहीं पर बरगद के पेड़ के नीचे लेट गए। देव सावित्री ने पति के सिर को गोद में रख लिया। कुछ समय में यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण हरकर ले जाने लगे। उनके पीछे-पीछे सावित्री भी चल दीं। तब यमराज ने उनको समझाया कि सत्यवान अल्पायु थे, इस वजह से उनका समय आ गया था। तुम वापस घर चली जाओ। पृथ्वी पर लौट जाओ। लेकिन सावित्री नहीं मानीं। इस पर सावित्री ने कहा कि जहां मेरे पति जाएंगे। वहां तक मैं भी जाउंगी. यही सत्य है।
यमराज सावित्री की ये बात सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा। यमराज की बात सुनकर सावित्री ने उत्तर दिया कि मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उनकी आंखों की रोशनी लौटा दें। तब यमराज ने तथास्तु कहकर उसे जाने को कहा। लेकिन सावित्री यम के पीछे चलती रही। तब यमराज दोबारा प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं, तब सावित्री ने वर मांगा कि मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मिल जाए। इसके बाद सावित्री ने वर मांगा कि मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।
सावित्री की पति-भक्ति को देखकर यमराज अत्यंत प्रसन्न हुएं और तथास्तु कहकर वरदान दे दिया, जिसके बाद सावित्री ने कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूरा होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान देते हुए सत्यवान को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री वापस बरगद के पेड़ के पास लौटी। जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। कुछ देर बाद सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखों की रोशनी आ गई. साथ ही उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हें वापस मिल गया।
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन यह घटना हुई थी और अपने पतिव्रता धर्म के लिए देवी सावित्री प्रसिद्ध हो गईं। उसके बाद से ज्येष्ठ अमावस्य को ज्येष्ठ देवी सावित्री की पूजा की जाने लगी। वट वृक्ष में त्रिदेव का वास होता है और सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही जीवनदान मिला था। इस वजह से इस व्रत में वट वृक्ष, सत्यवान और देवी सावित्री की पूजा करते हैं।