प्रेम और भक्ति मार्ग सनातन धर्म में सुझाए गए वो दो मार्ग हैं जिस पर चल कर मनुष्य ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। जहां प्रेम मार्ग पर मनुष्य को सिर्फ ईश्वर के प्रति भावना से समर्पित होने के लिए प्रेरित किया जाता है। वहीं, भक्ति मार्ग मन, धन, कर्म से ईश्वर को खुश करने की बात करता है। जिसमे ईश्वर का श्रिंगार उनकी आरती और उनके भोग का प्रावधान है। समाज के ज़्यादातर लोग इसी मार्ग का पालन ईश्वर आराधना के लिए करते है। क्योंकि ईश्वर प्राप्ति की ये सबसे आसान और सुगम राह बताई गई है। जिसके लिए सेवा भाव हम पूर्ण रूप से मानव दिनचर्या में शामिल करते हैं। तो आइए जानते हैं कैसे भोग लगाने का क्या है सही तरीका…..
इसका जवाब धार्मिक ग्रंथों के कुछ प्रसंगों से मिलता है।
प्रथम प्रसंग जब माता सीता की खोज करते हुए भगवान श्री राम जंगल मे भटक रहे होते है तो वो माता शबरी के द्वार पहुँचते हैं। अपने इष्ट को देखकर माता शबरी प्रफुल्लित हो उठती है और उनके सेवा सत्कार के लिए उन्हे अपने मुख से जूठा किया हुआ बेर उन्हे देती है और प्रभु श्री राम बहुत ही प्रेम के साथ उनके उस जूठे बेर को बड़े ही प्रेम से खाते है।
दूसरा प्रसंग महाभारत काल मे महाराज विदुर की और उनकी पत्नी सुलभा या कुछ लोग उन्हे विदूरनी कहते हैं। दोनों की भगवान कृष्ण की बहुत ही बड़े भक्त होते थें। एक बार भगवान श्री कृष्ण उनके आश्रम पर पहुँचते है और प्रेम मे इतना मग्न होने के कारण विदुर की पत्नी उन्हे केले की जगह पर केले का छिलका ही उन्हे प्रेम से भोग लगाने को अर्पित करती है। और भगवान श्री कृष्ण भी बड़े प्रेम से उसे खा लेते है।
तीसरा प्रसंग है जब माता सीता हनुमान जी को भोजन करने को कहती है। और रसोई का पूरा खाना समाप्त करने के बाद भी हनुमान की भुख शांत नहीं होती है। ये समस्या माता सीता प्रभु श्री राम को बताती है तो प्रभु श्री राम हनुमान जी को एक तुलसी का पत्ता देने को बोलते है। और एक तुलसी का पत्ता ग्रहण करने के उपरांत हनुमान जी का भूख समाप्त हो जाता है।
इन उपरोक्त चार प्रसंगों से हम भगवान को भोग लागने के शाश्वत नियम को जान सकते है। और वो है भगवान किसी विधि विधान किसी प्रकार के पकवान इत्यादि के भूखे नहीं बल्कि वो अपने भक्त के श्रद्धा भाव और प्रेम के भूखे है। उनके लिए न तो कोई भोग जूठा है और न ही छप्पन भोग उन्हे तो बस उस भक्त की तलाश है जो जो सच्ची भावना और भक्ति के साथ उनको अपना भोग रूपी प्रेम अर्पण करे।
फिर चाहे कोई उन्हे केले का छिलका खिलाये या फिर कोई झुते बेर हनुमान जी के प्रसंग से सिद्ध होता है कि भगवान किसी भोग से तृप्त नहीं होते बल्कि सच्ची भक्ति और प्रेम से यदि उन्हे कोई एक तुलसी का पत्ता भी दे तो उनको तृप्ति हो जाती है। इसलिए भगवान को केवल और केवल प्रेम से सिद्ध किया जा सकता है।
तो जब भी आप ईश्वर की आराधना करें या उन्हे भोग प्रसाद प्रदान करें तो केवल और केवल आपका मन पवित्र होना चाहिए और अपनी क्षमता और श्रद्धा भक्ति से आप जो भी ईश्वर को अर्पित करेंगे वो ही ईश्वर ग्रहण करेंगे।