प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी काल भैरव से अनुमति लेकर अपना पर्चा भरने जा रहे हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार काल भैरव रुद्र यानि शंकर जी के ही अंश या रूप माने जाते हैं। महादेव की नगरी काशी में तो इनका अलग ही महत्व है। श्रद्धालु मानते हैं कि अगर काशी में भैरव नाथ जी के दर्शन पूजन नहीं किया तो काशी आना ही निष्फल हो जाता है। उन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। मान्यता इतनी गहरी है कि वाराणसी की कोतवाली में थाना प्रभारी अपनी मुख्य कुर्सी पर खुद नहीं बैठता। वहां की मुख्य कुर्सी पर भौरवनाथ ही विराजते हैं। कुर्सी पर बाकायदा उनकी तसवीर पूरी श्रद्धा के साथ रखी जाती है। इन्हें काल भौरव भी कहा जाता है. खास मौकों पर तो भैरवनाथ को पुजारी बाकायादा पुलिस की वर्दी भी पहनाते हैं, जिसमें तीन सितारे और पी-कैप भी शामिल होती है।
भैरव नाथ के सामने हाजिरी क्यों जरूरी
काशी ही नहीं हिंदू श्रद्धा के दूसरे केंद्रों पर भी भैरवनाथ का बहुत अधिक महत्व है। उज्जैन में भौरव नाथ का दर्शन महाकाल के दर्शन से कम जरूरी नहीं माना जाता। आज के शब्दों में कहा जाय तो भौरव नाथ नगर के कोतवाल और इमिग्रेशन अफसर जैसे हैं। यानी अगर आप उस शहर में हैं तो काल भैरव के सामने हाजिरी लगाए बगैर आप शहर से ही गैरहाजिर रहेंगे। माना जाता है कि भैरव हर प्रकार से अपने भक्तों की रक्षा भी करते हैं। वैसे ही जैसे कोतवाल। उनका रूप शत्रुओं के लिए भयानक माना जाता है। शायद यही कारण है कि उन्हें मदिरा का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसे कुछ और आध्यात्मिक स्तर पर ले जाएं तो दरअसल वे अपने भक्तों की उनके विकट शत्रुओं, लोभ, क्रोध और काम वैगरह से बचाते हैं।