माना जाता है कि आज ही के दिन यानी माघ महीने शुक्ल पक्ष की पंचमी को मां सरस्वती पृथ्वी पर अवतरित हुई थी, इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के तौर पर मनाने की परंपरा है। मनुष्य अपने अज्ञानता रुपी अंधेरे को दुर करने के लिए ज्ञान की देवी के रुप में पूजी जानी वाली मां सररस्वती की अराधना करते हैं। यह दिन ज्ञान, विद्या, बुद्धिमत्ता, कला और संस्कृति की देवी माँ सरस्वती को समर्पित है। इस दिन माँ शारदा के पूजन का बहुत महत्व है।
कहा जाता है जहां लक्ष्मी हो जरुरी नहीं वहां सरस्वती भी विराजित हों पर जहां सरस्वती होती हैं वहां लक्ष्मी स्वंय ही चली आती हैं। तो अगर आप अपने घर में धन की कमी और दरिद्रता को दुर या खत्म करना चाहते हैं तो मां सरस्वती की सच्चे मन से अराधना करिए। और ज्ञान की देवी को अपने घर रुपी मंदिर में आने का निमंत्रण दें।
कैसे करें मां सरस्वती को प्रसन्न
किसी भी पवित्र कार्य या पूजा पाठ करने से पहले अपने घर और शरीर को साफ एवं स्वच्छ करना ही उत्तम माना गया है। आस पास अगर कचरा होगा या आपका शरीर मलित होगा तो कितनी भी घंटीयां और शंख बजा लें देवी देवता आपकी पुकार सुनकर नहीं आएंगे। इसके बाद बारी है आपके मन की इसे भी पवित्र और अच्छे विचारों से शुध्द करिए। पूजा के दौरान किसी के बूरे की कामना ना करें और ना ही अपने कामनाओं की पूरी होने की इच्छा के साथ पुजा में बैठे। तत्पश्चात शुभ मुहूर्त में ही पूजन करें। आज सरस्वती पूजन के किए शुभ मुहूर्त सुबह 7.07 मिनट से लेकर दोपहर 12.35 मिनट तक ही रहेगा है। इस समयकाल के दौरान पूजा करनें से जल्दी होती है पुजा स्वीकार्य। देवी को प्रसन्न करनें के लिए इस मंत्र का जाप अवश्य करें-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
बसंत पंचमी के दिन भूल कर भी न करें ये काम
बसंत पंचमी के दिन किसी भी अपशब्दों व झगड़े से बचना चाहिए। मांस-मदिरा के सेवन से दूर रहें। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना उत्तम माना गया है।बिना स्नान किए भोजन न करें। संभव हो तो पीले वस्त्र ही पहने। पेड़-पौधे न काटें। आज जरूरतमंदों के बीच पाठ्य सामग्री का दान अवश्य करें।
बसंत पंचमी की मान्यताएं
कहा जाता है कि इसी दिन कामदेव मदन का जन्म हुआ था।लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय हो इसके लिए लोग रतिमदन की पूजा और प्रार्थना हैं। देवी सरस्वती का जन्म बसंत पंचमी को हुआ था, इसलिए उस दिन उनकी पूजा की जाती है, और इस दिन को लक्ष्मी जी का जन्मदिन भी माना जाता है; इसलिए इस तिथि को ‘श्री पंचमी’ भी कहा जाता है। इस दिन सुबह अभ्यंग स्नान किया जाता है और पूजा की जाती है। बसंत पंचमी पर, वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा और प्रार्थना का बहुत महत्व है। ब्राह्मण शास्त्रों के अनुसार, वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और सभी देवताओं की प्रतिनिधि हैं। वह विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी और अनंत गुण शालिनी देवी सरस्वती की पूजा और आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है।
कामदेव और रति की पुजा
हिंदू धर्म में का कामदेव को प्रेम का देवता माना जाता है। मान्यता है कि धरती पर सभी प्रणियों में प्रेम और उन्माद की उत्पत्ति कामदेव और उनकी पत्नी रति के नृत्य से होती है। जो कि इस धरा पर संतति की उत्पत्ति का आधार है। इसके साथ ही बसंत पचंमी के दिन को बसंत ऋतु के आगमन होता है। लोग शीत ऋतु का आलस्य और शिथिलता त्याग कर प्रेम और उन्माद से प्रफुल्लित होते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार बसंत पंचमी के दिन कामदेव और रति स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। उनके आगमन से ही धरा पर बसंत ऋतु का आगमन होता है। इसी कारण बसंत पंचमी पर कामदेव के पूजन का विधान है।
आज के दिन मुहूर्त के अनुसार साहित्य, शिक्षा, कला इत्यादि के क्षेत्र से जुड़े लोग विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। देवी सरस्वती की पूजा के साथ यदि सरस्वती स्त्रोत भी पढ़ा जाए तो अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं और देवी प्रसन्न होती हैं