मृदुल सिंह, ज्योतिषाचार्य
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को बिल्वपत्र बहुत प्रिय है। शिवजी की आराधना बिल्वपत्रों के बिना अधूरी है, लेकिन इसका आशय यह नहीं कि हम शिवजी को बिल्वपत्र अर्पण करने के आकांक्षा में बिल्व के वृक्षों को ही उजाड़ दें। अधिकांश लोग यह सोचकर अधिक मात्रा में बिल्वपत्र अर्पण करते हैं कि शायद इससे उन्हें शिवजी की अधिक कृपा प्राप्त होगी। यह एक भ्रान्त धारणा है, क्योंकि परमात्मा तो भावप्रधान होते हैं ना कि परिमाण प्रधान। पूर्ण प्रेमासिक्त और फ़लाकांक्षा रहित भाव से अर्पित किया गया एक छोटा बिल्व पत्र भी वह फ़ल दे सकता है जो फ़लाकांक्षा से अर्पित किए गए लाखों बिल्वपत्र नहीं दे सकते।
1 करोड़ कन्यादान का फल देता है बिल्वपत्र का अर्पण
‘लक्षार्चन’ व ‘लाखोत्री’ जैसी परम्पराएं जिनमें लाखों की मात्रा में पुष्प या बिल्वपत्र अर्पण करने होते हैं, पूर्णतया अनुचित है। प्रकृति परमात्मा का ही प्रकट रूप है। उसे हानि पहुंचाना उचित नहीं। हमारे मतानुसार यदि आप लक्षार्चन करना ही चाहते हैं तो बिल्वपत्र का एक पौधा रोपित करें। जिस दिन आपके द्वारा रोपित पौधा बड़ा होकर वृक्ष बनेगा और उस बिल्वपत्र के वृक्ष पर लाखों पत्तियां आ जाएंगी, उस दिन आपका ‘लक्षार्चन’ पूर्ण हो जाएगा।
वृक्षों को पुष्प व पत्तों से नग्न कर भला कोई लक्षार्चन कैसे सफ़ल हो सकता है। नारद जी ने ‘मानस’ पुष्प को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए इन्द्र से कहा था कि करोड़ों बाह्य पुष्पों को चढ़ाकर जो फ़ल प्राप्त होता है, वह केवल एक मानस-पुष्प चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है। हमारे शास्त्रों में पुष्पों को तोड़ने के नियम व मंत्र निर्धारित हैं। ठीक उसी प्रकार बिल्वपत्र के तोड़ने का भी समय व मंत्र है।
बिल्वपत्र तोड़ते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
“अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।
गृह्णामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात् ॥”
शास्त्रों में बिल्वपत्र तोड़ने का निषिद्ध काल तय है। इन तिथियों में बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए। चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या और सोमवार को बिल्वपत्र नहीं तोड़ना चाहिए।हर साल सावन के महीने को सभी शिव भक्त एक त्यौहार की तरह मनाते हैं और तरह-तरह से देवाधिदेव महादेव का पूजन अर्चन कर उनकी कृपा से मनवांछित फल प्राप्त भी करते हैं। वैसे तो सावन के अलावा भी शिव को बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं, लेकिन सावन मास की बात ही कुछ और है। अगर सावन में ऐसे और इस विधि से शिवजी को बेलपत्र अर्पित किए जाएं तो प्रसन्न होकर महादेव भक्त जिस चीज की कामना करता है, वह पूरी होती है।
शिवजी को प्रिय है बेलपत्र
शास्त्रों में उल्लेख आता है कि भगवान शिव के पूजन में बेलपत्र शिवजी को अर्पित की जाने वाली सबसे प्रिय वस्तु है। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं महादेव। मान्यता है कि शिव की उपासना बिना बेलपत्र के पूरी नहीं होती, अगर आप भी देवों के देव महादेव की विशेष कृपा पाना चाहते हैं तो सावन मास में बेलपत्र को ऐसे अर्पित करें।
बेलपत्र का महत्व
बेल के पेड़ की पत्तियों को बेलपत्र कहते हैं। बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं, लेकिन इन्हें एक ही पत्ती माना जाता है। भगवान शिव की पूजा बेलपत्र के बिना पूरी नहीं मानी जाती। ब्रह्मा, विष्णु और शिव का साक्षात रूप है तीन मुखी रुद्राक्ष। सावन में धारण करते ही होने लगता है चमत्कार।
शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करते समय इन बातों का रखें ध्यान
1– एक बेलपत्र में तीन पत्तियां होनी चाहिए।
2– पत्तियां कटी या टूटी हुई न हों और न ही उनमें कोई छेद हो।
3– भगवान शिव को बेलपत्र चिकनी ओर से नहीं अर्पित करें।
4– एक ही बेलपत्र को जल से धोकर बार-बार भी चढ़ाया जा सकता है।
5– एक साथ में ढेर सारी यानी की एकट्ठी बेलपत्र ना चढ़ावें।
6– हमेशा एक एक करके “ऊँ नमः शिवाय” मंत्र का उच्चारण करते हुए ही बेलपत्र अर्पित करें।
7– 1, 5, 7, 11, 21, 51 या 108 की संख्या में ही बेलपत्र शिवलिंग पर अर्पित करें।