छठ पूजा भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें श्रद्धालु कठिन नियमों का पालन करते हुए सूर्य देव और छठी मैया की उपासना करते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि छठ पूजा के चारों दिन कौन-कौन सी विधियां की जाती हैं, पूजा की सही तिथियां, और इस पर्व का धार्मिक महत्व।
छठ पूजा 2024 की तारीखें
छठ पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तक चलता है। इस वर्ष छठ पूजा का आयोजन 5 नवंबर से 8 नवंबर तक होगा।
- नहाय खाय (5 नवंबर): छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रती पवित्रता का पालन करते हुए गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करते हैं। स्नान के बाद शुद्ध भोजन ग्रहण करते हैं, जो व्रत की शुद्धि का प्रतीक है।
- खरना (6 नवंबर): दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रतधारी पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को प्रसाद के रूप में गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल ग्रहण करते हैं। प्रसाद को नए मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है, और यह प्रसाद छठी मैया को अर्पित करने के बाद ही लिया जाता है। इसके बाद व्रती का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।
- संध्या अर्घ्य (7 नवंबर): तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इस दिन व्रतधारी पानी में खड़े होकर संध्या के समय सूर्य देवता को अर्घ्य देते हैं। यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है जब सैकड़ों लोग एक साथ सूर्य की उपासना में जुटते हैं।
- उषा अर्घ्य (8 नवंबर): छठ पूजा का चौथा और अंतिम दिन उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसके बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन छठी मैया और सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है, और फिर व्रती अन्न जल ग्रहण करते हैं।
छठ पूजा का धार्मिक महत्व
छठ पर्व को सूर्य उपासना का पर्व कहा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत से भक्तों को सूर्य देवता की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक माने जाते हैं। सनातन शास्त्रों में सूर्य देव को जीवन के आधार के रूप में पूजा जाता है और छठी मैया को संतान की रक्षा करने वाली देवी माना गया है।
इस पर्व के दौरान व्रती अपने परिवार और समाज की सुख-समृद्धि के लिए तपस्या करते हैं और कठिन नियमों का पालन करते हैं। छठ पूजा के माध्यम से भक्त अपने परिवार के लिए सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और सुरक्षा की कामना करते हैं।
क्यों दी जाती है सूर्य को अर्घ्य?
छठ पूजा में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। यह प्रकृति के संतुलन को दर्शाता है, जो जीवन के चक्र का प्रतीक है। सूर्य उपासना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और माना जाता है कि इससे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
निष्कर्ष
छठ पूजा केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि आस्था, प्रकृति और जीवन चक्र के प्रति श्रद्धा का प्रतीक भी है। नहाय खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य के रूप में इस पर्व में चार चरण होते हैं, जिन्हें पूरे विधि-विधान से निभाया जाता है। इस पर्व के माध्यम से लोग अपनी आस्था को सूर्य देव और छठी मैया में समर्पित करते हैं और समृद्धि व स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
इस तरह छठ पूजा का यह महापर्व समाज में एकता, विश्वास और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है, जो इसे एक विशेष पर्व बनाता है।