Posted by: Team IndiaWave Last updated on : July 10, 2020

वैज्ञानिकों का दावा: कोविड मरीजों के साथ रहने वाले लोग इस महामारी से बच सकते हैं

फ्रांस के वैज्ञानिकों ने लंबे समय तक एक अध्ययन करने के बाद यह दावा किया है कि कोरोना मरीजों के साथ रहने वाले लोग इस महामारी से बच सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस घर में कोई कोरोना पॉजिटिव मरीजों के साथ एक ही घर में रहने वाले तीन चौथाई लोगों के शरीर में इस बीमारी से बचने का रक्षा कवच बन जाता है यानी साइलेंट इम्यूनिटी विकसित हो जाती है। ऐसा होने से अगर वे कहीं से संक्रमण की चपेट में आते हैं तो भी खुद ही ठीक हो जाते हैं। 

फ्रांस के स्ट्रासबर्ग यूनवर्सिटी हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया है। वे इसे साइलेंड इम्यूनिटी इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इसमें खून की एंटीबॉडी जांच से यह पता नहीं लगाया जा पा रहा है कि व्यक्ति में कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित हो चुकी है या नहीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह माना जाता है कि अगर कोरोना वायरस के खिलाफ बॉडी में एंटीबॉडी बन रही है तो इस बीमारी से जल्दी उबरा जा सकता है। 

वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि दुनिया की लगभग 10 फीसदी आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित हो चुकी है और ये लोग कोरोना के हल्के लक्षणों से संक्रमित होकर खुद ही ठीक भी हो चुके हैं। मगर हालिया शोध के हिसाब से दुनिया में संक्रमित हो चुके लोगों की संख्या अनुमान से ज्यादा हो सकती है क्योंकि इनमें साइलेंट इम्युनिटी विकसित हो चुकी है। पर इसका पता एंटीबॉडी टेस्ट से नहीं लगता।

 इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने फ्रांस में एक कोरोना संक्रमित परिवार के सात सदस्यों में एक स्पेशल एंटीबॉडी का पता लगाया। इस परिवार के आठ में से छह सदस्यों यानी एक चौथाई सदस्यों का एंटीबॉडी टेस्ट निगेटिव निकला। जिससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि ये संक्रमित नहीं हुए। बाद में इनके बोन मैरो में टी-सेल्स की जांच की गई तब उनमें कोरोना की एंटीबॉडीज मिलीं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इनमें कोरोना के खिलाफ साइलेंट इम्यूनिटी विकसित हो चुकी थी। इसका मतलब है कि यह सब कोरोना से संक्रमित होकर ठीक हो चुके थे, जिसके बारे में इन्हें खुद भी नहीं पता था।  

वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस से लड़ने के लिए हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को ज्यादा सहायता की जरूरत होती है। ऐसे में व्हाइट ब्लड सेल्स से टी सेल निकलकर बोनमैरो में पहुंचते हैं। यह वायरस से लड़ने का प्रमुख हथियार होता है। शोधकर्ता प्रोफेसर समीरा फाफी-क्रेमर का कहना है कि छोटे समूह पर किए गए इस शोध के जरिए संकेत मिलते हैं कि एंटीबॉडी जांच में टी-कोशिका को भी शामिल करने की जरूरत है ताकि संक्रमण की सही स्थिति तक पहुंचा जा सके।